Terror of Bengal
Terror of Bengal
जलकुंभी ( Water Hyacinth ) अमेजन बेसिन का मूल निवासी जलीय पौधा हैं | यह ज्ञात सबसे तेजी से बढ़ने वाले पौधों में से एक हैं | जिस कारण यह अपने मूल निवास के बाहर एक समस्याग्रस्त और आक्रामक प्रजाति हैं | यह पौधा पानी के ऊपर तैरता रहता हैं और पानी की सतह के ऊपर लगभग 1 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ सकता हैं | इसकी पत्तियाँ बहुत ही चौड़ी और गूदेदार होती हैं | इसकी शाखा पर बैंगनी – काले रंग का फूल खिलता हैं |
हर पौधे से हर साल हजारों की संख्या में बीज बनते है जो 25 से भी अधिक वर्षों तक सक्रिय बने रहते हैं | जलकुंभी का पौधा कुछ ही हफ्तों में पूरे जलाशय पर फ़ैल जाता हैं | जिससे जलाशय में रहने वाले जीवों तक प्रकाश नही पहुँच पाता और यह पानी की ऑक्सीजन भी अवशोषित कर लेता हैं | जिससे जलाशय में रहने वाले जीव जैसे – मछलियाँ, कछुएँ और अन्य छोटे जलीय जीव ऑक्सीजन और प्रकाश की कमी के कारण पानी में ही मर जाते हैं और पानी प्रदूषित होता जाता हैं | यह बिमारी फ़ैलाने वाले अनेक जीवाणुओं और विषाणुओं को आश्रय प्रदान करता हैं | यह मच्छरों के रहने के लिए भी उचित स्थान होता हैं | जिससे जलाशय के आस – पास रहने वाले लोग और जीवों में अनेकों बिमारियाँ फ़ैल जाती हैं | यह पूरी दुनिया के लगभग सभी भागों में फ़ैल गया हैं जिससे यह पूरे विश्व की एक बहुत बड़ी समस्या बन गया हैं | भारत में सबसे पहले इसे इसके सुन्दर फूलों के लिए बंगाल के एक जलाशय में डाला गया था | इसने जल्द ही पूरे जलाशय को ढ़क लिया | जिससे जलाशय की बहुत सी मछलियाँ मर गयी | वहाँ से यह जल्द ही पूरे बंगाल में फ़ैल गया | मछली बंगाल का मुख्य भोजन हैं | लेकिन जलकुंभी के कारण बंगाल में मछलियों की संख्या में भारी गिरावट आई | और बंगाल में मछलियों की कमी के कारण वहाँ के लोगों के भोजन और आय पर भारी असर हुआ | बाद में यह भारत के सभी क्षेत्रों और जलाशयों में फ़ैलता गया | यह भारत में भी एक बड़ी समस्या बन गया हैं | यह बंगाल से पूरे भारत में फैला | जिसके कारण इसे Terror of Bengal ( बंगाल का आतंक ) भी कहते हैं |
Terror of Bengal
नियंत्रण ( Control ) –
इसके नियंत्रण के 3 मुख्य उपाय हो सकते हैं |
जैविक नियंत्रण ( Biological Control ) –
जलकुंभी नियंत्रण में यह एक अच्छा उपाय हो सकता हैं | यह उपाय कम खर्चीला और प्रभावी होता हैं | यह बिना प्रदूषण लेकिन थोड़ा धीमी गति से काम करने वाला उपाय हैं | इसमें कुछ पौधों और सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता हैं | ये पौधे और सूक्ष्मजीव केवल जलकुंभी के पौधों को ही नुकसान पहुँचाते हैं और जलकुंभी की संख्या नियंत्रित करते हैं | इसके कोई दुष्प्रभाव भी नही हैं | लेकिन यह उपाय अन्य उपायों की तुलना में नया हैं | जिससे यह अभी केवल इसका परीक्षण करके देखा जा रहा हैं और इसके जल्द ही लागू होने की उम्मीद हैं | लेकिन इसमें सरकारी मान्यता और मंजूरी मिलना बाकी हैं |
2.भौतिकी नियंत्रण ( Physical Control ) –
यह भी जलकुंभी नियंत्रण का एक उपाय हो सकता हैं | यह अन्य उपायों की तुलना में महंगा और लम्बे समय में पूरा होने वाला उपाय हैं | इसमें जलकुंभी को मशीनों द्वारा जलाशयों और नदियों से निकाल कर उसका निपटान किया जाता हैं | इसमें जलीय और भूमि पर चलने वाले दोनो प्रकार के वाहनों की आवश्यकता होगी | यह बड़ी समस्या का अल्पकालिक उपाय हो सकता हैं | लेकिन यह अधिक प्रभावी नही हो सकता हैं क्योंकि जलकुंभी के अवशेष जल की तली में छूट जाने की स्थिति में वह दोबारा से अलैंगिक जनन द्वारा अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं | साथ ही यह कोई स्थायी उपाय नही हैं | यह छोटे जलाशयों के लिए प्रभावी हो सकता हैं | लेकिन बड़े जलाशयों के लिए यह बहुत ही खर्चीला और अस्थायी उपाय हैं | इसमें बहुत लम्बा समय लग सकता हैं और फिर भी यह समस्या हल हो जाये इसकी कोई गारंटी नहीं हैं |
3. रासायनिक नियंत्रण ( Chemical Control ) –
तीनों उपायों में से सबसे कम इसी का उपयोग किया जाता हैं क्योंकि इसके बहुत अधिक और लम्बे समय तक रहने वाले Side Effects होते हैं | इसके उपयोग से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ सकता हैं | बाकी दो उपाय सफल न होने की स्थिति में इसका उपयोग किया जाता हैं | इसमें विभिन्न प्रकार के जहरीले रसायनों का उपयोग किया जाता हैं | जिससे जलकुंभी नष्ट होती हैं | यह भी छोटे क्षेत्रों के लिए अधिक प्रभावी हो सकता हैं | क्योंकि बड़े क्षेत्रों में इसका उपयोग किये जाने के बहुत से दुष्प्रभाव हो सकते हैं | यह अन्य उपायों की तुलना में कम लागत और कम श्रम का उपाय हैं | लेकिन इसका प्रयोग नही किया जाये तो ही बेहतर होगा क्योंकि इससे भूजल प्रणाली भी प्रभावित हो सकती हैं |
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